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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2793
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।

अथवा
चोल प्रशासन के बारे में आप क्या जानते हैं?
अथवा
चोल शासन प्रबन्ध पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

उत्तर- 

चोलकालीन शासन-प्रबन्ध

 

राजा - चोल राजा अत्यधिक शक्तिशाली होते थे और वे अपने को अनेक उपाधियों से विभूषित 1 करते थे। साधारणतया राजा का पद पैतृक होता था और बहुधा वे सिंहासन के लिए संघर्ष करते थे। राजा की सभा में बड़े-बड़े सामन्त तथा पदाधिकारी होते थे। चोल राजा का पद कितना महान होता था, यह इस बात से प्रकट हो जाता है कि तत्कालीन मन्दिरों में राजा और रानियों की मूर्तियाँ स्थापित की जाती थीं, शासन के समस्त क्षेत्रों में राजा का हस्तक्षेप होता था।

युवराज - राजा अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे बड़े या योग्य पुत्र को युवराज नियुक्त कर देता था और अपने शासनकाल में ही उसे प्रशासकीय कार्यों का पर्याप्त अनुभव करा देता था।

विभिन्न पदाधिकारी - इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है कि चोलों के राज्य में मंत्रिमण्डल की व्यवस्था थी। कोई भी अभिलेख इस तथ्य पर प्रकाश नहीं डालता परन्तु उसमें किंचितमात्र भी सन्देह नहीं है कि राजा अपनी सहायता के लिये अनेक पदाधिकारी नियुक्त करता था। इन्हें नगद वेतन दिया जाता था। विभिन्न पदाधिकारी प्रचलित परम्पराओं के आधार पर कार्य करते थे। चोलों के शासनकाल में एक सुसंगठित सिविल सर्विस का भी विकास हुआ था।

साम्राज्य विभाजन - शासन की सुविधा के लिए समस्त साम्राज्य को मण्डलों में बाँटा गया था। मण्डलों का पुनर्विभाजन कोट्टमों में होता था। एक मण्डल में कई 'कोट्टम' होते थे। कोट्टम नादुओं में विभक्त था और एक 'नादु' में अनेक 'कुर्रम' (कई ग्रामों का समूह ) होते थे। 'कुर्रम' को अनेक नगरों एवं गाँवों में बाँटा गया था। मण्डल के प्रशासन के लिए राजा कोई वायसराय नियुक्त करता था, जो राजकुमारं या राजवंश से सम्बन्धित कोई व्यक्ति होता था। मण्डलों से लेकर ग्रामों तक स्थानीय सभाओं की व्यवस्था की गई थी। 'नादु' की सभा को 'नट्टर' और नगर की सभा को 'नरस्तार' कहा जाता था। ग्राम सभा को 'डरार' कहते थे।

स्थानीय स्वशासन - चोल शासनकाल में ग्रामों के स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था की गई थी। ग्रामों की सभायें जनतन्त्रात्मक ढंग से चलाई जाती थीं। प्रशासकीय कार्यों के लिए विभिन्न समितियाँ बनायी जाती थीं, जिन्हें वेरियम कहा जाता था। विभिन्न समितियों में ग्राम की स्थायी समिति, तडाग समिति, कृषि समिति, उपवन समिति, न्याय समिति आदि मुख्य थीं। विभिन्न समितियों के चुनाव के लिए प्रत्येक ग्रामों को 30 वार्डों में बाँट दिया जाता था। विभिन्न समितियों के उम्मीदवारों की योग्यतायें भी निर्धारित कर दी जाती थीं जिनका 'लॉट' के द्वारा निर्वाचन होता था। विभिन्न उम्मीदवारों के नाम अलग-अलग पत्तियों में लिखकर किसी बर्तन में डाल दिये जाते थे। उसके बाद किसी निष्पक्ष व्यक्ति या बालक से निश्चित संख्या की पंत्तियाँ निकालने के लिए कहा जाता था, जिन व्यक्तियों की पत्तियाँ निकल जाती थीं वे नियुक्त घोषित कर दिये जाते थे।

सैन्य व्यवस्था - चोल शासकों ने एक अच्छी सेना और श्रेष्ठ नौ सेना का निर्माण किया था। हाथी, घुड़सवार और पैदल सेना के प्रमुख अंग थे। अभिलेखों से चोल सेना में 70 रेजीमेंटों का होना प्रकट होता है। उनकी सेना में 60,000 हाथी थे, कुल सेना में 1,50,000 सैनिक थे, अरब से श्रेष्ठ घोड़े मंगाये जाते थे और उन पर काफी धन व्यय किया जाता था, सैनिकों की छावनियाँ होती थीं जहाँ उनकी शिक्षा और अनुशासन का पर्याप्त प्रबंध था, सम्राट के शरीर रक्षक अलग होते थे, जिन्हें 'वेलाइककारा' के नाम से पुकारा जाता था। योग्य सैनिकों तथा सरदारों को 'क्षत्रिय शिरोमणि' की उपाधि देकर सम्मानित किया जाता था। चोल शासकों की नौ सेना भी शक्तिशाली थी, जिसके बल पर वे श्रीलंका और शैलेन्द्र साम्राज्यं पर आक्रमण कर सके, अरब सागर में अपने व्यापर की सुरक्षा कर सके और बंगाल की खाड़ी को वस्तुतः अपनी एक झील बना सके। इस प्रकार चोल शासकों ने एक शक्तिशाली रक्षात्मक और आक्रमणात्मक सैनिक शक्ति का निर्माण किया था, परन्तु चोल सेना हिन्दुओं की परम्परागत युद्ध में नैतिकता का पालन करने में असमर्थ रही थी। युद्ध के अवसरों पर चोल सैनिक असैनिक जनतंत्र पर अत्याचार करते थे। लूटमार, अंगविच्छेद और स्त्रियों का निरादर करना सैनिकों के लिए अपवाद न था।

चोलों के पास एक विशाल सेना थी, स्थायी सेना में पैदल घुड़सवार और हाथी तीनों ही थे। सेना में लगभग 60,000 हाथी थे, इसके साथ ही सेना में अनेक दल भी होते थे, यथा-

1. कुदिरैच्चेवमर - विशिष्ट अश्वरोहियों का दल,
2. विल्लिवड - विशिष्ट धनुर्धारियों का दल,
3. बड़पेर्रकैवकोलर - राजा का अंगरक्षक पैदल दल,
4. कुज्जुर मल्लर - हाथियों का दल।

सेना को विभिन्न टुकड़ियों में बाँटा गया था और ये टुकड़ियाँ कडगम् (छावनियों) में रहती थीं। सैनिकों के प्रशिक्षण की भी उचित व्यवस्था थी। सेना नागरिकों का सदैव ध्यान रखती थी और उसकी सुख-सुविधाओं के लिए हर सम्भव प्रयास करती थी। राजा ही सेना का सर्वोच्च पदाधिकारी होता था, वह आगे-आगे युद्धभूमि में सेना का नेतृत्व करता था। उसेक नीचे 'महादण्डनायक' होता था जिसे सेनापति भी कहते थे। महादण्डनायक के अधीन विभिन्न नायक और उनकी टुकड़ियाँ रहती थीं। चोलों के पास एक नौसेना (जहाजी बेड़ा) भी था, जिससे स्पष्ट है कि वे जलमार्ग पर युद्ध करते थे। राजराज ने अपने जहाजी बेड़े की सहायता से मालद्वीप पर विजय प्राप्त की थी। राजेन्द्र प्रथम ने सेना की सहायता से लंका पर आक्रमण किया था।

चोल सेना विजयी राज्यों के प्रति अत्यन्त कठोर व्यवहार करती थी। चोल सैनिक निरीह नागरिकों, महिलाओं और ब्रह्मणों तक पर अत्याचार करने में नहीं हिचकिचाते थे। युद्ध में वीरता से लड़ने वाले चोलों के लिये यह बहुत बड़ी लज्जाजनक बात थी। चोलों की सम्पूर्ण शासन व्यवस्था को पूर्णरूप से देखने से यह विदित होता है कि चोलों ने एक सुदृढ़ प्रशासन की व्यवस्था की थी। उनकी शासन व्यवस्था संगठित थी। उनके विषय में श्री नीलकान्त शास्त्री ने लिखा है, एक योग्य नौकरशाह और सक्रिय स्थानीय समितियों के जो विभिन्न उपायों से नागरिकता की भावना का विकास करती थीं, के मध्य उच्च कोटि की प्रशासनिक क्षमता एवं पवित्रता का उच्च स्तर जो कदाचित हिन्दू राज्य कभी नहीं प्राप्त किया गया था, समय प्राप्त किया गया।

ग्राम सभा - ग्राम सभाओं के विविध कार्य थे और वे तालाबों, नगरों और नलकूपों का प्रबन्ध करती थीं, भूमिकर एकत्र करती थीं और मन्दिरों की व्यवस्था करती थीं तथा शिक्षा का प्रसार करती थीं। दैवीय विपत्ति के समय सहायता कोषों की व्यवस्था करना, पीड़ितों को सहायता पहुँचाना, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य का प्रबन्ध करना आदि भी इन ग्राम सभाओं के कार्य थे। वास्तव में इन सब कार्यों की रूपरेखा राजा के द्वारा निर्धारित कर दी जाती थी और ग्राम सभाएँ ही इन सब कार्यों को पूरा करती थीं। साधारण तौर पर राजा ग्राम सभाओं के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते थे। यदि किसी ग्राम की सभा में कोई अनियमितता बरती जाती थी तो उसकी सूचना राजा को तुरन्त दे दी जाती थी।

एक क्षत्र अभिलेख में इस बात का उल्लेख मिलता है कि चोल राजा ने एक ग्राम सभा पर एक मन्दिर की आय का दुरुपयोग करने के कारण जुर्माना कर दिया था। ग्राम सभा को किसी भी व्यक्ति को मृत्युदण्ड देने का अधिकार नहीं था।

न्याय व्यवस्था - चोलों की न्याय व्यवस्था भी अत्यन्त उच्चकोटि की थी, अधिकतर मुकदमों का निर्णय स्थानीय सभायें करती थीं राजा ही न्याय का सर्वोच्च पदाधिकारी था और वहीं अन्तिम अपील सुनता था, जूरी की प्रथा भी विद्यमान थी तथा दण्ड-व्यवस्था कठोर न थी। चोरों तथा व्यभिचारियों को गधे पर बैठाकर घुमाने का दण्ड दिया जाता था। संयोगवश हत्या हो जाने पर 16 कार्यों का जुर्माना होता था। नीलकान्त शास्त्री लिखते हैं कि "ग्राम पंचायतों और जातीय पंचायतों के अतिरिक्त नियमित रूप से गठित कचहरियों के द्वारा भी न्याय का कार्य किया जाता था। परम्पराओं, लेखों, गवाहों आदि को साक्ष्य मानकर निर्णय होता था। जहाँ कोई मानवीय साक्ष्य नहीं मिलता था, अग्नि या जल द्वारा परीक्षा की व्यवस्था थी।"

आय-व्यय के साधन - राज्य की आय का मुख्य साधन भूमिकर था जो उपज का 1/3 भाग होता था। यह आनाज और धन दोनों ही रूपों में प्राप्त किया जाता था। विभिन्न अवसरों पर भूमिक का वर्गीकरण किया जाता था। 'भूमि कर' गाँव सभायें ही एकत्र करती थीं। समय पर कर न एकत्र करने वाली ग्राम सभा के पदाधिकारियों को दण्ड दिया जाता था।

इसके अतिरिक्त व्यवसायिओं और शिल्पियों से कर लिया जाता था। जल और थल दोनों ही मार्गों से चुंगी लेने की व्यवस्था थी। वनों, खानों आदि से भी राज्य को पर्याप्त आय होती थी। अधिकांश चोल राजाओं ने जनता पर बहुत अधिक कर नहीं लगाये परन्तु कुछ राजाओं ने जनता को करों के बोझ से लाद दिया। कर अत्यन्त कठोरता से वसूल किया जाता था। चोल वंश का कुतोलुंग प्रथम एक ऐसा राजा था, जिसने जनता पर बहुत कम कर लगाये और उसका विश्वास प्राप्त किया। राज्य का व्यय मुख्य रूप से निम्निलखित कार्यों पर होता था-

1. राज्य कर्मचारियों का वेतन
2. सेना
3. मन्दिर
4. सड़कें
5. तालाब
6. नहरें
7. यज्ञदान
8. राजा एवं राजदरबारियों से सम्बन्धित कार्य।

अधिकांश धन युद्धों में ही व्यय होता था। परन्तु चोल शासकों ने सार्वजनिक हित के कार्यों में भी बहुत अधिक धन व्यय किया। अनेक राजाओं ने नहरें, जलाशय, कुएँ आदि बनवाये तथा जनता की सुविधाओं का ध्यान रखा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
  2. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
  4. प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
  6. प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
  7. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  8. प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
  9. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  10. प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  12. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  13. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
  15. प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
  18. प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
  21. प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  24. प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
  28. प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
  29. प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
  30. प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
  31. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
  37. प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
  38. प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  42. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
  46. प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  47. प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
  49. प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  50. प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
  52. प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
  53. प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  54. प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  55. प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
  56. प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
  59. प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
  61. प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  67. प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
  69. प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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